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rohini vrat 2024 date: रोहिणी व्रत क्या है, इसे कैसे किया जाता है और कौन कर सकता है? जानें इसके लाभ

जैन धर्म में विशेष रूप से महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण व्रत है जिसे रोहिणी व्रत कहा जाता है। यह व्रत हर महीने के उस दिन किया जाता है जब रोहिणी नक्षत्र प्रबल होता है। यह नक्षत्र जैन धर्म में विशेष महत्व रखता है, और इस दिन का व्रत आत्मा के विकारों को दूर करने, पुण्य अर्जित करने और कर्मों से मुक्ति पाने के लिए किया जाता है।

रोहिणी व्रत का महत्व:

रोहिणी व्रत का उद्देश्य शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धता प्राप्त करना है। जैन धर्म के अनुयायी इस व्रत को आत्मा के कर्म बंधन से मुक्त करने के लिए करते हैं। इस दिन विशेष रूप से भगवान वासुपूज्य की पूजा की जाती है। इस व्रत में, महिलाएं खास तौर पर अपने पति की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सुखी जीवन के लिए पूजा करती हैं। इस दिन का पालन करने से परिवार में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है। इस व्रत का पालन करते हुए भक्तों को दान करने की भी अहमियत दी जाती है, जिससे पुण्य की प्राप्ति होती है।

रोहिणी व्रत का आयोजन और विधि:

रोहिणी व्रत विशेष रूप से जैन समुदाय में मनाया जाता है, और यह मुख्य रूप से महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। महिलाएं इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं, फिर पवित्र होकर व्रत की शुरुआत करती हैं। व्रत के दौरान, विशेष रूप से भगवान वासुपूज्य की पूजा की जाती है। पूजा में वासुपूज्य भगवान की ताम्र या स्वर्ण प्रतिमा की स्थापना की जाती है। इस दिन 5, 7 या 3 वर्षों तक व्रत रखने के बाद ही उद्यापन (समापन) किया जाता है।

रोहिणी व्रत कथा:

रोहिणी व्रत की एक पौराणिक कथा भी है, जो इस व्रत के महत्व को दर्शाती है। कथा के अनुसार, प्राचीन समय में चंपापुरी नामक नगर में राजा माधवा अपनी रानी लक्ष्मीपति के साथ राज्य करते थे। उनके 7 पुत्रों और एक पुत्री रोहिणी का जन्म हुआ था। एक दिन राजा ने भविष्यवक्ता से पूछा कि उनकी पुत्री का विवाह किससे होगा। भविष्यवक्ता ने बताया कि रोहिणी का विवाह हस्तिनापुर के राजकुमार अशोक से होगा। राजा ने स्वंयवर का आयोजन किया और रोहिणी ने राजकुमार अशोक से विवाह किया।

इस विवाह के बाद राजा माधवा ने एक दिन मुनिराज से पूछा कि रानी इतनी शांतचित्त क्यों हैं? मुनिराज ने राजा को एक पौराणिक कथा सुनाई, जिसमें धनमित्र नामक एक व्यक्ति की पुत्री दुर्गंधा की कहानी थी। दुर्गंधा के विवाह के बाद उसकी दुर्गंध के कारण उसे छोड़ दिया गया। मुनिराज ने बताया कि इस दु:ख से मुक्ति के लिए रोहिणी व्रत करना चाहिए।

धनमित्र ने मुनिराज की सलाह मानी और रोहिणी व्रत को किया। व्रत के प्रभाव से दुर्गंधा ने पुण्य अर्जित किया और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुई। इस व्रत का पालन करके, रोहिणी ने अपने पापों को धो दिया और मोक्ष को प्राप्त किया।

रोहिणी व्रत एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, जिसे जैन धर्म के अनुयायी विशेष रूप से महिलाएं करती हैं। इस व्रत का उद्देश्य आत्मा के विकारों को दूर करना, पुण्य अर्जित करना और कर्म बंधन से मुक्ति प्राप्त करना है। व्रत के दौरान भगवान वासुपूज्य की पूजा की जाती है, और दान देने का भी महत्व है। यह व्रत महिलाओं के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे न केवल उनका पुण्य बढ़ता है, बल्कि उनके परिवार में सुख-शांति भी बनी रहती है।

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Sai Prakash

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